RASTRAVAAD AUR VIVAD

 राष्ट्रवाद







जिस तरह से हमने बचपन से लेकर बडे होते हुए जिस राष्ट्रभक्ती के बारे मे सुना हुआ था उसमे अब काफी बडे पैमाने पर बदलाव हुए है । राष्ट्रवाद के नाम पर अब अनेक लोग अनेक प्रकार की बाते करते दिखायी दे रहे है और इनमे से हर कोई अपने आप को सच्चा साबित करने मे लगा हुआ है । अब जनता जब इन सब के विचार सुन रही है तो जाहिर है के जनता मे भी राष्ट्रवाद के नाम पर फुट पडी है या यूं कहूं तो जानबूझकर यह फुट जनता मे डाली गई है ।

अब हर एक चिज को याने इनमे धर्म, राजनीतिक दल,संगठन, नेता और यहाँ तक के आम इन्सानों को तक अब इसके बारे अपने आप को साबित करना पड रहा है । यहाँ जिसका-उसका अपना एक पैमान सामने आ रहा है और हर कोई अपने तरीके से इसे नापने की कोशिश मे लगा हुआ है । अब इसका फायदा राजनैतिक दल कैसे नही उठाते ? कुछ राजनेता और राजनैतिक दलों का इस क्षेत्र मे अपना वजुद कुछ ऐसे बना लिया है मानो यह राष्ट्रवाद का प्रतीक बन बैठे है । फिर इसकी वजह से वह आम जनता को जो परोस रहे है, वही समाज मैं फैल रहा है । इसका असर समाज मे इतने बुरे तरीके से हो रहा है के उससे नफरत के सिवाए और कुछ समाज-जनता को अबतक हासिल नही हुआ ।



आइए जो असल राष्ट्रवाद है उसे हम भी अपने तरीके से समाज मे फैलाने की कोशिश करते है, जिससे जो नफरत फैल रही है वह झुठा राष्ट्रवाद खत्म हो सके, अपना राष्ट्रवाद  अपने नजरिये से ।


राष्ट्रवाद के उफर अबतक काफी बड़े पैमाने पर चर्चाएं और बहोत से जानकारों इसपर अपना-अपना नजरिया लोगों के सामने रखा है वह हम पहले जानने की कोशिश करते है ।


राष्ट्रवाद का उदय : 

  

राष्ट्रवाद का उदय 18 वी और 19 वी सदी में युरोप मे हुआ था । राष्ट्रवाद बस तक़रीबन सिर्फ दो सौ और कुछ साल पुराना ही इसका उदय की आयु है मगर से यह विचार बेहद सशक्त और टिकाऊ साबित हुआ है । राष्ट्रवाद इस शब्द का पहेली बार उपयोग जॉन गॉटफ्रेड हर्डर ने किया था और इन्होंने ने ही जर्मन राष्ट्रवाद की निव रखी थी । लेकिन उस समय इस विचार को समान धर्म, भाषा, क्षेत्र यहाँ तक ही माना गया । जब भी धर्म,भाषा,नस्ल, के आधार पर समरूपता स्थापित करने की कोशिश की गई तब तनाव एवं उग्रता को ही बल मिला ।


जब राष्ट्रवाद की सांस्कृतिक अवधारणा को ज़ोर-ज़बरदस्ती से लागू करवाया जाता है तो यह ‘अतिराष्ट्रवाद’ या ‘अन्धराष्ट्रवाद’ कहलाता है। 



प्रो. स्नाइडर के मुताबिक  :


इतिहास के एक विशेष चरण पर राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व बौद्धिक कारणों का एक उत्पाद - राष्ट्रवाद एक सु-परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करनेवाले ऐसे व्यक्तियों के समूह की एक मनःस्थिति, अनुभव या भावना है जो समान भाषा बोलते हैं, जिनके पास एक ऐसा साहित्य है जिसमें राष्ट्र की अभिलाषाएँ अभिव्यक्त हो चुकी हैं, जो समान परम्पराओं व समान रीति रिवाजों से सम्बद्ध है, जो अपने वीरपुरूषों की पूजा करते हैं और कुछ स्थितियों में समान धर्म वाले हैं ।


भारत मे राष्ट्रवाद  :


 अगर हम भारत मे राष्ट्रवाद की खोज करे तो कुछ विख्यातों के मुताबिक प्राचीन भारत में इसके हमे कड़ी याँ नजर आती है, मगर वह भारत का प्राचीन  राष्ट्रवाद भी बड़े बहस का मुद्दा है, हम उसमे पडें गे ही नही । हम आधुनिक भारत मे जो राष्ट्रवाद भारत के जनसामान्य मे विकसित हुआ उसपर बात करेंगे ।


अगर हम भारत मे राष्ट्रवाद की बात करे या उसे देखे तो हमे धर्म,भाषा,नस्ल ऐसे विषयों का योगदान कम हो रहा । क्योंकि भारत मे अनेक धर्म, पंथ, भाषाएँ और जिसकी उसकी अपनी एक संस्कृति देखने को मिलती है । इन सब विषयों को विचार भारत मे कम ही फैला है । भारत मे राष्ट्रवाद की भावना बाहरी शक्ती को पराजित/भगाने के लिए बड़े पैमाने पर जागृत हुई ।

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